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बड़लियास रामलीला में सीताराम का शुभ विवाह हुआ सम्पन्न

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भीलवाड़ा ( बलराम वैष्णव ):- सवाईपुर क्षेत्र के बड़लियास कस्बे में स्थित बड़े चारभुजा नाथ मंदिर प्रांगण में आयोजित रामलीला में बुधवार रात्रि को सीताराम के विवाह के साथ ही, लक्ष्मण परशुराम के संवाद का मंचन किया गया । बड़े चारभुजा नाथ मंदिर प्रांगण पर उत्तर प्रदेश के हिंदू सत्य सनातन कला मंडल काशी प्रयाग के कलाकारों द्वारा संगीतमय रामलीला का मंचन किया जा रहा है, जिसमें पांचवें दिन बुधवार रात्रि को जब प्रभु रामचंद्र जनकपुर में भगवान भोलेनाथ अजगव पिनाक का खंडन करते हैं उसी समय महेंद्र गिरी पर्वत पर परशुराम तपस्या कर रहे होते हैं, उनका ध्यान भंग हो जाता है और वह ध्यान लगाकर देखते हैं जैसे ही उन्हें ज्ञात होता है की उनके द्वारा रखी हुई शिव धनुष का खंडन हो चुका है तुरंत जनकपुर आते हैं तभी सभी राजा अपना अपना परिचय देकर प्रणाम करते हैं और फिर जनक प्रणाम करते हैं, माता सीता को प्रणाम करते हैं फिर विश्वामित्र महाराज आकर गले मिलते हैं और राम लक्ष्मण भी परशुराम जी को प्रणाम करते हैं, तभी परशुराम जी जनक जी से पूछते हैं की है जनक कि तुम्हारे राज्य में आज देश देशांतर के राजा गण क्यों पधारे हुए हैं तब जनक जी बताते हैं कि हे भगवान आज हमारी पुत्री सीता का स्वयंवर है अचानक भगवान परशुराम का ध्यान शिव धनुष पर पहुंचता है और वह पूछते हैं की शिव धनुष का खंडन करने वाला कौन है उसको इस सभा से अलग कर दो अन्यथा एक के धोखे में सभी राजा मारे जाएंगे, तभी प्रभु रामचंद्र कहते हैं कि हे भगवान जिसने भी शिव धनुष का खंडन किया है वह शिव का प्यार और आपका दास ही हो सकता है कहिए उसके लिए क्या आज्ञा है तब परशुराम जी कहते हैं कि वह मेरा दास नहीं हो सकता, जिसने ऐसा दुस्साहस किया है वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा शत्रु है तब लक्ष्मण कहते हैं कि हे भगवान मैंने तो बचपन में ऐसी बहुत सी धनुष तोड़ दिया, तब आप इतना क्रोध नहीं किया, इस धनुष में ऐसी कौन सी ममता है कि आप इतना क्रोध कर रहे हैं, तभी के परशुराम जी राम जी से कहते हैं की है राम अगर तुम सचमुच में राम के पति राम हो तो को यह धनुष जिससे मैं नौ गुण में चाहता हूं और तुम बारह गुण में चढ़ा कर मेरा संदेश दूर करो फिर भगवान परशुराम अपने आश्रम के लिए वापस चले जाते हैं और इधर महाराज जनक जी दूत भेज कर महाराज दशरथ को बुलवाते हैं कुलरीति के अनुसार सीता राम शुभ विवाह संपन्न करते हैं ।।

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Author: shiningmarwar

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